सिरसा(प्रैसवार्ता)। सफाई महाअभियान, किन्नरों और वेश्याओं को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे, रक्तदान, शरीरदान में कीर्तिमान बनाने के बाद मानवता के महायज्ञ में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा ने एक और अनुकरणीय आहुति डाली है। मरणोपरांत अस्थियों के विसर्जन को पर्यावरण सुरक्षा से जोडकऱ डेरा सच्चा सौदा ने एक बार फिर से समाज को पाखंड से दूर एक नई राह दिखाने का काम किया है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत डॉ. गुरमीत राम रहीम इन्सां के मार्गदर्शन में अब लोग अपने परिजनों के देहांत के बाद उनकी अस्थियों को गंगा या अन्य किसी नदी में बहाने की बजाए उनको डेरा के सेवादारों को सौंपा करेंगे और डेरा एक विशेष विधि से उन अस्थियों को डेरा परिसर के एक हिस्से में जमीन में दफनाकर उन पर पौधे लगाएगा जिससे परिजनों को इस बात का संतोष होगा कि उनके परिजन मृत्यु के बाद भी समाज के किसी काम आ सके। इससे न केवल अस्थि विसर्जन से नदियों में होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगेगी, बल्कि पौधे लगाने से पर्यावरण और भी स्वच्छ होगा।
अस्थियों से पर्यावरण सुरक्षा
डेरा की इस मुहिम में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि डेरा सच्चा सौदा के प्रबंधकों ने इस संवेदनशील विषय पर देशी-विदेशी जानकारों से विस्तार से चर्चा करने के बाद इसकी घोषणा की और साथ ही डेरा अनुयायियों पर किसी प्रकार का जोर नहीं डाला गया कि वो अपने परिजनों की अस्थियों का इस प्रकार से ही विर्सजन करें। अलबत्ता जनता-जनार्दन को खुद यह तय करने की आजादी दी कि वो अपने विवेक से इस बाबत निर्णय लें और अगर उन्हें लगता है कि डेरा की यह मुहिम सही है, तो ही अपने परिजनों की अस्थियों को इस पर्यावरण संरक्षण की मुहीम में जगह दें। ऐसा करके डेरा सच्चा सौदा ने यह भी साबित कर दिया कि डेरा अपने अनुयायिओं को आध्यात्मिक शिक्षा और मानवता भलाई के कार्यों से जोडऩे के साथ-साथ पर्यावरण सरंक्षण को लेकर भी गंभीरता से प्रयासरत है। हो सकता है कि कुछ लोगों को डेरा की यह पहल ना जंचे परंतु देश की नदियों की हालत देखकर तो डेरा सच्चा सौदा की यह पहल अपने आप में अनूठी महसूस होती है। देशभर के लोगों के लिए गंगा-यमुना आस्था का एक बड़ा केन्द्र है। ऐसे में निश्चित तौर पर गंगा-यमुना में बढ़ती गंदगी और पर्यावरण प्रदूषण के कारण यह दोनों नदियां प्रदूषित हो रही हैं। खुद केन्द्र और राज्य सरकारें इस बाबत करोड़ों रूपए के बजट आवंटित करती रही हैं परंतु बावजूद इसके कोई खास सकारात्मक नतीजे सामने नहीं आए। सकारात्मक नतीजे ना आने के पीछे सबसे बड़ा कारण ही यही था कि केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों पवित्र नदियों के अंदर पड़ी गंदगी को तो साफ करवाने की कोशिशें करती रही परंतु अस्थि विसर्जन के नाम पर गंगा के पीने योग्य पानी में प्रतिदिन मानव हड्डियों के अवशेष डालने की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता था। यह तय था कि गंगा में जब तक अस्थि विसर्जन जारी रहेगा, तब तक इस पावन नदी को पूरी तरह से साफ एवं स्वच्छ रखना संभव नहीं है। ऐसे में डेरा सच्चा सौदा ने अस्थि विसर्जन का यह तरीका देकर कम से कम गंगा नदी से काफी बोझ हलका करने का काम तो किया ही है।
निश्चित तौर पर गंगा के घाटों पर अस्थि विसर्जन को 'कारोबारÓ की तरह चलाने वालों को यह मुहिम रास नहीं आएगी, परंतु ऐसी विधि से खुद गंगा माता भी संतुष्ट और सहमत नहीं होगीं जिसमें उनके अंदर उनके ही बच्चों के अवशेषों को बहा दिया जाए। ऐसे में डेरा सच्चा सौदा इस बात के लिए बधाई का पात्र है कि उसने ऐसा साहसिक कदम उठाकर अपने अनुयायियों को सही मायने में पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर होने का सन्देश दिया है।
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