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भूपेंद्र हुड्डा के बदलते करवट कार्यक्रम से समर्थक सकते में

सिरसा(प्रैसवार्ता)। हरियाणवी कांग्रेस के समांतर पिछले लगभग चार वर्ष से अपनी कांग्रेस चला रहे पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करवट बदल कार्यक्रम से हुड्डा समर्थकों में बेचैनी का आलम देखा जाने लगा है, जो ज्यादातर आस्था परिवर्तन के मुड़ में देखे जा सकते है। पिछले चार वर्षों से अपने समर्थकों को मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष हरियाणवी कांग्रेस अशोक तंवर के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने तथा उनके कार्यक्रम व जनसभाओं से दूरी रखने का निर्देश देने वाले भूपेंद्र हुड्डा ने तंवर की राजनीतिक खटिया खड़ी करने के अनेक प्रयास किए, मगर खटिया खड़ी करना तो दूर रहा, खटिया तक पहुँच भी नहीं पाए। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर हुड्डा फौज ने हर प्रकार से दवाब बनाया कि तंवर को प्रधान पद से मुक्त कर दिया जाए। दवाब की राजनीति में विफल रहने पर शक्ति प्रदर्शन का कार्ड खेला। किसान पंचायत, किसान व्यापारी पंचायत,मजदूर पंचायत, दलित पंचायत के बैनर तले हुड्डा ने अपनी राजनीतिक जमीं की तलाश शुरू की, मगर हरियाणा के लोगों ने विशेष  तव्वजों नहीं दी, जबकि अशोक तंवर का कारवां तेजी पकड़ता रहा। वर्तमान में हरियाणवी तथा समांतर कांग्रेस की यह स्थिति है कि हरियाणवी कांग्रेस में वफादार कांग्रेसियों का जमावड़ा है, जबकि समांतर कांग्रेस में चमचागिरों का आंकड़ा काफी बड़ा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की सोच है कि चमचे कभी वफादार नहीं होते और वफादार कभी चमचे नहीं होते। इस सोच पर गहराई से मंथन किया जाए, तो तंवर का पलड़ा काफी मजबूत नजर आता है। तंवर की मजबूती से भूपेंद्र हुड्डा के समर्थक सकते में है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व  के नजरिए को देखते हुए भूपेंद्र हुड्डा ने भाजपाई दिग्गजों में तालमेल बढ़ाना शुरू कर दिया है। हुड्डा के इस करवट बदल कार्यक्रम से उनके समर्थकों को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी है, जो हृदय परिवर्तन का संकेत देती है। हरियाणवी राजनीति वर्तमान में ऐसे मोड़ पर पहुँच चुकी है कि हजकां प्रकरण दोहराया जा सकता है, जिसमें हजकां सुप्रीमों को छोड़कर शेष विधायकों ने आस्था बदल ली थी। हरियाणवी कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं में कोई सच्चाई नजर आती है, क्योंकि तंवर की कार्यप्रणाली और संगठन मजबूती से शीर्ष नेतृत्व काफी उत्साहित है। वैसे भी भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ कई मामलों की जांच चल रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का हुड्डा को तव्वजों देना कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है।

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